हम चलते ही रहे और कहीं पहुंचे भी नहीं,
तो हमने चलने को ही अपना मुक़द्दर समझ लिया।
शिकायत किसी और से कभी की भी नहीं,
हाल-ई-दिल खुद का खुद से बयां कर लिया।
हमारी बदनवाज़ी ने उन्हें रूला दिया होगा
इस इल्म से हम सहम जातें है।
अपनी बदसुलूकी को पर्दा देने के जतोजहद में
हम उन्हें तारतार कर आतें है।
ना हिंदी आती है ना उर्दू आती है,
जबा के है हम फ़क़ीर हमें बस हालेदिल बयां करने की हूक आती है.
ना रोना आता है ना हंसना आता है,
सबा के है हम मुरीद, ख्वाब नहीं मुकमल हमारे क्यूंकि बहुत कम हमें नींद आती है.
उठके चल दिए थे, बेदिली में हम भी महफ़िल से
जो पास-ए-अदब से थे, अब हाथ धो बैठे हैं शर्म-ओ-हया से
उन्होंने कहलवाया, अपना किरदार तो अदा करो
जब मरोगे तो मरोगे ही, जबतक जिन्दा हो तर्ज़-ए-जफ़ा न करो